साथियो,जब भी किसी व्यक्ति के आत्महत्या करने की खबर देखने या सुनने को मिलती है तो मन विचलित हो जाता है।विश्व में प्रत्येक 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है ,यह आंकड़ा प्रतिवर्ष 08 लाख से अधिक है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जब एक व्यक्ति आत्महत्या करता है उसी दौरान 20 व्यक्ति आत्महत्या का अटेम्प्ट कर रहे होते हैं।आत्महन्ता व्यक्तियों में गरीब से लेकर बड़े-बड़े नामी गिरामी लोग शामिल हैं।गरीब भूख से,किसान खेती से और व्यापारी व्यापार से परेशान होकर आत्महत्या करते हैं लेकिन उन व्यक्तियों के बारे में क्या कहूँ जो अपार संपत्ति के मालिक होने के बाद भी कुछ और पाने की चाहत में अपना जीवन बलिदान कर देते हैं।हजारों करोड़ की संपत्ति के मालिक कैफे कॉफ़ी डे के सीईओ श्री व्ही. जी सिद्धार्थ द्वारा नेत्रवती नदी में कूद कर आत्महत्या करने से धन के कारण खुश होने की कांसेप्ट पर प्रश्न चिन्ह लग गया है।
आइये उन परिस्थितियों का विश्लेषण करें जो व्यक्ति को मृत्यु का वरण करने हेतु प्रेरित करती है:-
★ अभाव-यह अभाव धन,समय या रिश्तों का हो सकता है।
★बीमारी-बहुत सारे लोग बीमारी के कारण मौत को गले लगा लेते हैं। गम्भीर बीमारियों से लेकर डिप्रेशन तक इसमें शामिल हैं।
★अकेलापन-बहुत से व्यक्ति अकेलापन बर्दाश्त नहीं कर पाते इसलिए स्व हन्ता बन जाते हैं।
★असफल होने का भय:-यह कारण धनी व्यक्तियों में आत्महत्या का प्रमुख कारण है क्योंकि उन्हें अपने अपने व्यवसाय में असफल होने या पर्याप्त प्रगति न होने का भय होता है। उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद छवि खराब होने का भय इसमें शामिल है।युवाओं में प्यार में मिली असफलता भी आत्महत्या का प्रमुख कारण है।
★धर्म गुरुओं का दुष्प्रभाव-पिछले दिनों हुई कुछ घटनाओं में ईश्वर से मिलने अथवा मोक्ष प्राप्त करने की कोशिश में कई परिवारों ने सामूहिक आत्महत्याएं की हैं इसमे विभिन्न तथाकथित धर्म गुरुओं के दुष्प्रभाव को देखा गया है।
★मकसद-जिंदगी जीने के पीछे किसी मकसद या उद्देश्य नहीं होना भी जीवनलीला समाप्त करने का एक संभावित कारण हो सकता है।
आत्महत्या करने में किसी को कोई लाभ हुआ हो इस प्रकार का एक भी प्रकरण आज तक समाज मे देखने को नहीं मिला है।हम सोचते हैं कि एक झटके में जीवन खत्म और सारी झंझटों से मुक्ति लेकिन भारतीय दर्शन को माना जाए तो इस तरह जीवन समाप्त होने पर मुक्ति सम्भव नहीं है।हमारी आत्मा यहीं मनुष्य लोक में भटकती रहती है।
साथियो,मैं आपको आपके जन्म के समय की स्थिति में लिए चलता हूं,आपसे आग्रह है दो मिनट के लिए अपनी आंखें बंद करें और महसूस करें कि आपके माता-पिता स्वयं को कितना खुश महसूस कर रहे हैं।आपके दादा-दादी और रिश्तेदार एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं।सबके मन मे आपको लेकर खुशी,आनन्द और उल्लास का माहौल है।आपके आसपास का हर स्त्री-पुरुष आपके दुनियां में आने पर कितना आह्लादित था।जब आप थोड़े बड़े हुए तो मां ने कितने प्यार से आपको पाला-पोसा, शिक्षक ने कितने अच्छे तरीके से आपको पढ़ाने का प्रयास किया,पिता ने इसलिए अनुसाशन में रखा कि कहीं आप बिगड़ न जाएं।आपके भाई-बहन आपके बिना एक दिन भी रह पाते थे।आपके लिए सबके मन में एक स्वप्न था कि आप बड़ा होकर अपने जन्म- स्थान,समाज,माता-पिता और राष्ट्र का नाम रौशन करेंगे लेकिन आज आप जीवन समाप्त करने के निर्णय तक पहुंच गए तो क्या वास्तव में आपके जीवन मे जीने का मकसद समाप्त हो गया है।क्या आपके परिवार,आपके समाज और राष्ट्र को आपकी आवश्यकता वास्तव में नहीं है?समाज मे आज भी बहुत सारे अनाथ,दिव्यांग, वृद्ध और अशिक्षित लोग हैं जिनके काम आपका जीवन आ सकता है।आप अपना जीवन किसी सामाजिक संगठन को सौंप सकते हैं जो आपकी योग्यता अनुसार आपको आपके मनपसन्द काम मे लगा सकता है।आप अपनी हॉबी या मनपसंद काम को कर सकते हैं,जिसे आप आज तक नहीं कर पाए थे।आप यह मानकर अपनी दूसरी जिंदगी शुरू कर सकते हैं कि मानसिक रूप से आपने नया जीवन प्राप्त कर लिया है,और कोई भी इंसानी सहारा आपको इस योग्य न लगे तो अपना जीवन अपने आराध्य ईश्वर को समर्पित कर दें हो सकता ईश्वर आपको सच्ची राह दिखा दे और आपसे कुछ अद्भुत कार्य करवा ले।
साथियो,जब आत्महत्या के प्रकरणों का हम वैज्ञानिक विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि अधिकांश प्रकरणों में आत्महत्या से पूर्व व्यक्ति धीरे-धीरे निर्णय पर पहुंचता है।वह गहरे अवसाद में डूबता जाता है और पूरी दुनियां से अपने आप को क्रमशः काटता जाता है।इस दौरान परिवार और समाज की यह जिम्मेदारी है कि वह ऐसी परिस्थिति को समझे और समस्या का निराकरण करे।उदाहरण के लिए हर वर्ष परीक्षा परिणामों के पश्चात हजारों बच्चों द्वारा की जाने वाली घटनाओं को देखें तो पाएंगे कि हम परीक्षा में कम अंक लाने वाले अथवा असफल हो जाने वाले बच्चों को इस तरह ट्रीट करते हैं मानो इस परीक्षा के परिणाम के कारण बच्चे का जीवन ही व्यर्थ हो गया है।इस बात की क्या गारंटी है कि 90 प्रतिशत से ज्यादा लाने वाले आगे चलकर होनहार ही निकलेंगे और असफल बच्चे देश का नाम रौशन नहीं करेंगे।संयुक्त परिवार में समझाने के लिए दादा-दादी हुआ करते थे लेकिन एकल परिवार में न कोई समझने को तैयार है और न समझाने को।जब सुसाइड नोट पढ़ने को मिलता है तब हम सब दो-चार दिन विचार करते हैं और बाद में भूल जाते हैं।
आइये अब हम समाधान पर विचार करें:-
★आप जहाँ भी काम करते हैं वहां अपने से संबंधित हर व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक अवस्था पर गौर करें और देखें कि आपका साथी अथवा अधीनस्थ कोई व्यक्ति अत्यधिक परेशान तो नहीं है।यदि ऐसा है तो सबसे पहले उसकी बात सुनें,समझें और उसके लिए कुछ किया जाना संभव हो तो करें।यदि ऑफिस में आप बॉस हैं तो हमेशा यह सोचें कि अधीनस्थों की भी जिंदगी है।
★अपने परिवार के साथ एक समय का भोजन एकसाथ बैठकर करें।भावनाओं को शेयर करें,प्रोत्साहन दें,आवश्यकता हो तो डाँटें किंतु हतोत्साहित नहीं करें। परिवार के साथ नियमित रूप से मनोरंजन, भ्रमण और अन्य गतिविधियों के लिए क्वालिटी टाइम निकालें।सम्भव हो तो बच्चों को कुछ पढ़ाएं।
★अपने माता-पिता,भाई-बहन आदि नजदीकी लोगों से प्रतिदिन कम से कम एक बार अवश्य बात करें।इसके साथ ही अपने दोस्त,रिश्तेदार एवं अन्य शुभचिंतकों से नियमित अंतराल पर अवश्य बात करें।यहाँ बात करने का मतलब फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर बात करने से नहीं है,फ़ोन लगाकर बात करें।
★जीवन छोटा सा है यह घटिया नहीं होना चाहिए अतएव लोगों में प्यार बांटिए।हमेशा जिंदादिल रहें।आपने यदि करोड़ों कमा लिए हैं तो भी सामने वाले के प्रति सम्मान बना कर रखें।दूसरी तरफ यदि आप निर्धन हैं तो दिल से धनवान बनें क्या पता कब ईश्वर मेहरबान हो जाये,उम्मीद कायम रखें।
★जीवन मे यदि कोई विपत्ति आ जाये तो यह याद रखें कि यह समय भी गुजर जाएगा।दुनियां में ऐसा कौन है जिसने कष्ट नहीं उठाए।राम,कृष्ण,ईशा मसीह,गांधी-सभी के जीवन मे कष्ट आये लेकिन उन्होंने चुनौतियों का सामना बहादुरी से किया।हमें भी बहादुरी से हर परिस्थिति का सामना करना है।
★हमेशा अच्छी पुस्तकें पढ़ें क्योंकि पुस्तकों से अच्छा कोई दोस्त नहीं है।महापुरुषों के प्रेरणादायक लेख/जीवन वृत्त पढ़ें और अपने साथ रखें।जब भी हौसला टूटे तो तुरंत श्री मद्भागवत गीता जैसी कोई पुस्तक का कोई भी अध्याय खोलें और पढ़ना शुरू कर दें।अपने ध्यान को समस्या से हटाकर कुछ पल के लिए अध्यात्म की ओर मोड़ दें क्योंकि कठिन प्रश्नों का उत्तर तब अच्छा मिलता है जब आप उसके बारे में सोचना बंद कर दें।तब भी समाधान न मिले तो राम चरित मानस की इस चौपाई को सत्य मानते हुए सब कुछ भगवान पर छोड़ दें-होइहै सोई जो राम रचि राखा।
★कितना भी बड़ा नुकसान हो जाये अपने मन को समझा लीजिये कि अपनी किस्मत में नहीं था,मान लो कि चोरी हो गयी या यह मान लो कि खो गया।
पुनः प्रयास शुरू कर दीजिए एडिसन की तरह जिन्होंने बल्ब के आविष्कार के पूर्व दस हजार बार असफ़लता पाई।गीता सार को दीवार पर ऐसी जगह चिपका दीजिये कि दिन भर में एक बार अवश्य पढ़ने को मिल जाये।