अपने परिवार में महापुरुषों की चर्चा नियमित रूप से अवश्य करें

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बहुत से साथियों ने प्रश्न किया कि मैंने लिखना क्यों बन्द कर दिया तो मेरा जवाब था कि समय नहीं मिलता।मैने इस बात पर पुनः विचार किया कि क्या तुम्हें जीवन मे कभी समय मिलेगा?हां यह कटु सत्य है कि समय कभी नहीं मिलेगा,जिस काम को आप प्यार करते हैं उसके लिये समय निकालना पड़ेगा।

 अपने परिवार,अपने बच्चों,अपने  मित्रों,अपने   माता-पिता और अपने स्वप्न को साकार करने लिये आपको इन्हीं 24 घंटों में से समय निकालना होगा और आपसे बहुत सारे व्यक्ति ऐसा करके सफल भी हुए हैं इसलिये आप कोई अनोखा काम करनेवाले नहीं हैं।

 आज अपने आप से वादा कर रहा हूँ कि  आज के बाद नियमित रूप से आपके सामने किसी न किसी रूप में आता रहूंगा।आइये महापुरुष श्रीराम के जीवन पर विचार करें-

          मातु पिता गुरु प्रभु कै बानी। 

          बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥

गोस्वामी तुलसीदासजी रामचरित मानस में लिखते हैं कि माता,पिता और गुरु की वाणी को 

को सदैव शुभ मानकर बिना विचार किये पालन करना चाहिए।भगवान राम ने पिता के द्वारा मां को दिए वचन का पालन करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया जबकि अगले दिन ही उनका राज्याभिषेक होने वाला था जबकि हम सभी सामान्य लोग अक्सर माता-पिता और गुरु द्वारा दिये निर्देशों पर ना-नुकुर करने लगते हैं और उनकी बात को नजरअंदाज करने का भरसक प्रयास करते हैं।उनके जीवन में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जब उन्होंने माता,पिता और गुरु के निर्देशों की अवज्ञा की हो।

 जीवन मे कठिन से कठिनतम स्थितियों के समक्ष विचलित न होना, एक राजपुत्र होने के बावजूद जंगल मे कन्दमूल खाकर जीवनयापन करना और पल पल पर आने वाले कष्टों का मुकाबला करने की सीख हमें उनका जीवन देता है।

 कलियुग में जब एक भाई दूसरे भाई को धोखा देना चाह रहा है तब राम और भरत का स्नेह प्रेरणादायक है जिसमें दोनों एक दूसरे के लिए राजपाट छोड़ कष्ट उठाने के लिए तैयार हैं।राजा भरत,राम की अनुपस्थिति में उनकी खड़ाऊ को सिंहासन पर रखकर राज्य किये,इतिहास में  भ्रातृप्रेम का यह सर्वोच्च उदाहरण है।सबरी के बेर प्रतीक हैं कि जीवन मे जो भी मिले उसका आनंद उठाइये,तिरस्कार मत कीजिये।

 मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जीवन हर रूप में आदर्श है,चाहे वह पुत्र का हो,भाई का हो,पति का हो,शिष्य का हो,मित्र का हो या राजा का।प्रेम का जीवंत स्वरूप उनके जीवन मे प्रकट होता है।पति के रूप में माता सीता के प्रति उनका अगाध प्रेम और समर्पण हम सबके लिए एक आदर्श है।जब वह मित्र के लिए कहते हैं कि-

          जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।

          तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। 

          निज दुख गिरि सम रज करि जाना।  

          मित्रक दुख रज मेरु समाना।।

          जिन्ह कें असि मति सहज न आई।

           ते सठ कत हठि करत मिताई।। 

स्पष्ट है कि उनके जैसा मित्र आज तक नहीं हुआ।

 रावण जैसे बलवान,ज्ञानी और शक्ति  संसाधन सम्पन्न व्यक्ति से एक कुशल नेतृत्व रीछ और वानर सेना के सहयोग से कैसे विजय प्राप्त कर सकता है,यह तथ्य उनके जीवन से सीखने को मिलता है।नेतृत्व कैसा हो के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं कि-

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |

पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

 भगवान श्री राम के जीवन से प्रेरणा लेते हुए संकल्प लें कि बड़े से बड़ा कष्ट हमें विचलित न कर सके,दूसरों की भलाई के लिए अपना जीवन न्यौछावर करें,सबके प्रति सद्भावना रखें और प्रसन्न रहें क्योंकि हर रात के बाद सुबह अवश्य होती है…शुभकामनाएं।

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