हम और आप आजकल अक्सर व्यस्त रहते हैं.ज़िन्दगी की सरलता कहीं खो सी गई है.फ़ास्टफ़ूड के जमाने में न तो हमारे पास बनाने का समय है और न खाने का.टेक्नॉलोजी ने हमारे जीवन पर क़ब्ज़ा जमा लिया है जिसके परिणामस्वरूप हमें बाज़ार में मोटरसायकल चलाते समय बात करना पड़ रही है.और तो और हम शमशान में भी अपना मोबाइल कान से चिपकाए घूमते हैं.आजकल बच्चे बिना मोबाइल और टीवी के खाना ग्रहण नहीं करते.
ज़िंदगी को सरल रखना ज़रूरी है और इसमें अपने परिवार को सर्वोच्च स्थान देने से बढ़के कोई काम नहीं है.मोटा खाओ-मोटा पहनो लेकिन नोलेज ऊँची रखो.सादा जीवन उच्च विचार की बात सदैव अमल में लायी जाना चाहिए.परिवार में सारे भाई बराबरी से प्रगति करेंगे तब ही आपका जीवन सुखी और सार्थक है अन्यथा जीवन नरक बनने में ज़्यादा समय नहीं लगता इसलिए यह माता-पिता की ज़िम्मेदारी है कि अपने सभी बच्चों के प्रति एक से रहें.
आख़िर समस्या कहाँ है?बचपन की वो मस्ती कहाँ चली गयी?आप आख़िरी बार अपने माँ-बाप के पास शांति से कब बैठे थे?उनके लिये नए कपड़े,जूते या गमछा कब ख़रीदा था?अपनी पत्नी के साथ शान्त बैठकर बच्चों के बारे में पूँछे हुए भी शायद महीनों हो गये होंगे?फिर इस भागदौड़ और कमाई का मतलब क्या है?
आजकल समाज में नशे की लत बढ़ती ही जा है.मेरे दादाजी स्वर्गीय रघुबर दयाल विस्वारी कहा करते थे कि पूत कपूत तो का धन संचय,पूत सपूत तो का धन संचय.बचपन में यह बात समझ में नहीं आती थी लेकिन अब बात एकदम क्रिस्टल क्लीयर है कि यदि आपके बच्चे पढ़-लिखकर कुछ बन गये,अच्छा व्यवसाय करने लगे तो आपका जीवन सुखद है भले ही आपके पास टूटी सायकल क्यों न हो.और यदि आपके बच्चे पढ़-लिखकर इन्सान न बन पाए तो अपना जीवन कलारी पर काटेंगे और जुआ,शराब और रंडीबाज़ी में अरबों रुपए भी नष्ट कर देंगे.इसलिए धन के साथ-साथ अपने परिवार और बच्चों पर ध्यान देना आवश्यक है.सदैव याद रखें कि जो आज गरीब हाँ वो कल अमीर हो सकता है और जो आज अमीर है वो कल फटेहाल हो सकता है.सारा परिणाम आज पर निर्भर है.
आप अपने दादा-नाना से पूँछें तो मालूम चल जाएगा कि हमारे पूर्वज हमेशा से बंजी किया करते थे मतलब शुरुआत में ठाठ-बाट से विभिन्न स्थानों और देशों में जाकर व्यापार किया करते थे और हर दूसरी-तीसरी पीढ़ी में चोरी,लूटपाट,धोखा इत्यादि किसी कारण से अपना सब कुछ बरबाद कर लेते थे और फिर शून्य पर आ जाते थे लेकिन हिम्मत नहीं हारते थे लेकिन आज का युवा ज़रा सी विपरीत परिस्थिति आने पर आत्महत्या कर लेता है.हमें बनिया कहा जाता है क्योंकि हमें बनना सिखाया जाता है इसलिए कैसी भी परिस्थिति आ जाए.चाहे हमारे पास एक भी रुपया न हो तब भी बनिए क्योंकि बनना ही हमारा धर्म है.हारिए न हिम्मत बिसारिए न राम.
दुनिया में हर चालीस सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या कर रहा है और प्रतिवर्ष 08 लाख लोग इस कारण से अपनी ज़िंदगी गँवा रहे हैं.हर व्यक्ति अवसाद से ग्रस्त नज़र आता है इसलिए आपके आसपास किसी व्यक्ति को नींद न आने की बीमारी जा या दिन भर सोता हो,भूख न लगती हो या बहुत खाता हो,निराशाजनक बात करता हो,बात-बात में मरने की बात करता हो तो वह आत्महत्या के हाई रिस्क ज़ोन में है.यदि कोई व्यक्ति पहले भी मरने की कोशिश कर चुका हा तो भ दुबारा से प्रयास कर सकता है.
आप पूँछेंगे कि ऐसी स्थिति में हम क्या करें?सबसे पहले तो ऐसे व्यक्ति को प्रेम,अपनापन और स्नेह दीजिए.उसे समय देकर उसकी बात इत्मीनान से सुनिए तथा ज़रूरत हो तो मनोवेज्ञानिक से मिलवाइए.उस पर पूरा ध्यान देकर हम एक व्यक्ति को मरने से बचा सकते हैं.
लोगों को आत्महत्या करने से रोकने और अवसाद से बचाने का मैं संकल्प ले चुका हूँ और अपना शेष जीवन इस नेक काम में समर्पित करने का मेरा दृढ़ इरादा है लेकिन यह काम आपके बिना पूरा नहीं हो सकता.मेरी website है-anantpragya.com और आप मुझे YouTube पर anantpragya नाम से सर्च करके मेरे videos देख कर प्रेरित हो सकते हैं.विद्यार्थियों के करियर सम्बन्धी समस्याओं का समाधान भी मुझे करना अच्छा लगता है.इन सब कामों के लिए एक हेल्प्लाइन नम्बर 9425144544 भी जारी किया है जिस पर आप सुबह 09 बजे से शाम 07 बजे तक सम्पर्क कर सकते हैं.
साभार-ब्रह्मेंद्र गुप्ता,उपायुक्त(विकास) ज़िला पंचायत शिवपुरी (म.प्र.),मोटिवेशनल स्पीकर,लेखक और करियर मार्गदर्शक,मोबाइल नम्बर-9425143583