अपने परिवार को बचाने का दायित्व हमारा ही है

Relations

कल सड़क पर एक यंग कपल को झगड़ते हुए देखकर लगा कि परिवार रूपी संस्था अविश्वास के संकट से गुजर रही है।नौकरी पेशा पति-पत्नी के मध्य जीवन की आपाधापी भयंकर तनाव का रूप लेती जा रही है और जब उनके घर बच्चा पैदा होता है तो उसको संभालना लगभग असंभव जैसा होता जा रहा है।आइए इन सभी विन्दुओं पर चर्चा करें।

          यंग जनरेशन के मध्य जिस तीव्रता से आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है उसको देखकर लगता है अगले दशक में शायद ही कोई ऐसा परिवार बचे जिसमें किसी न किसी ने वक्त से पहले मौत को गले न लगाया हो।हर दिन अखबार में कोई न कोई व्यक्ति किसी न किसी तरह जीवन त्याग रहा है।

          हम सब पैसा कमाने की होड़ में लगे हैं लेकिन यह भूल रहे हैं कि यदि परिवार बिखर गया तो यह धन किसके काम आएगा।यदि बच्चे रास्ता भटक गए तो कितना भी कमा के रख जाओ,एक-दो पीढ़ी में जुआ,शराब और रंडीबाजी में खत्म हो जाएगा।

          परिवार में टेलीविजन और फिल्मों के प्रभाव से बहुतायत में एक्स्ट्रा मेरिटल रिलेशन्स पनपने से परिवार में अविश्वास इस हद तक बढ़ गया है कि परिवार रूपी संस्था डगमगा रही है।पहले समाज और परिवार के बुजुर्ग इन रिश्तों को दबाव डालकर परिवार को संतुलित रख पाने में कामयाब हो जाते थे लेकिन आजकल आर्थिक स्वतंत्रता के कारण कोई किसी की बात समझने को तैयार नहीं है।आज हम केवल अपने आप को सही मान रहे हैं जिससे हम सब के विचार संकुचित हो गए हैं।

          स्वास्थ्य के मुद्दे पर परिवार की स्थिति अत्यंत गंभीर हो गयी है।आज परिवार के अधिकांश सदस्य लाइफ स्टाइल बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं।सुबह देर से उठना और रात को देर तक जागना आम है।डाइबिटीज, ब्लड प्रेशर,कोलेस्ट्रॉल,स्पाइनल कॉर्ड में दर्द जैसी बीमारियां नैचुरल लगने लगी हैं।आज दस-बीस प्रतिशत लोगों को छोड़ दें तो अधिकांश लोगों को विटामिन D और B-12 की कमी हो रही है।रही सही कसर कैंसर की बढ़ती संख्या ने पूरी कर दी है।दूध,घी,सब्जियां, मसाले सब जगह मिलावट के साथ-साथ भूमि,जल एवम वायु प्रदूषण ने हमें कैंसर सेंसिटिव बना दिया है और हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंग डैमेज हो रहे हैं।

          उपरोक्त परिस्थितियों से निबटने के लिए हमें कुछ कठोर अनुशासित उपाय करने होंगे।सर्वप्रथम संतुलित जीवन शैली अपनाकर अपने खानपान और स्वास्थ्य का ध्यान रखना होगा।इस हेतु आवश्यक व्यायाम, योग या प्राणायाम का अभ्यास करना होगा।दूसरा उपाय अपनी आवश्यकताओं को सीमित करना होगा जिससे धनोपार्जन का अनावश्यक दबाव उत्पन्न न हो।तीसरा काम है अपने रिश्तों को संतुलित रखना।किसी ने क्या खूब कहा है कि रिश्ते पौधे की तरह होते हैं और इन्हें जीवित रखने के समय,प्रेम और परिश्रम से पोषित करना होता है अन्यथा इनका मुरझाना सुनिश्चित है।इसलिए आपको माता-पिता,भाई-बहन,बच्चों और अन्य नजदीकी लोगों से अपने संबंधों को ध्यानपूर्वक संभालना सीखना होगा।इसके लिए नियमित अंतराल पर संपर्कों को लाइव रखना होगा अन्यथा आपकी उपेक्षा आपके किसी अपने को डिप्रेसन में लाने के लिए पर्याप्त होगी और इसका खामियाजा पूरे परिवार को भुगतना पड़ेगा।

          इन सब संबंधों में सबसे नाजुक रिश्ता अपने पति या पत्नी के प्रति विस्वास का है और सदैव यह याद रखिये कि दुनिया का कोई भी रिश्ता इसका स्थान नहीं ले सकता तथा दुनिया मे किसी के लिए भी इस रिश्ते की कुर्बानी आप नहीं दीजियेगा क्योंकि यही वह संबंध है जिसके लिए कहा जाता है मेड फ़ॉर ईच अदर।वर्तमान में इस रिश्ते की उलझनों के कारण हजारों जिंदगियां तबाह हो रही हैं जिन्हें रोकने की कोशिश करना जरूरी है क्योंकि किसी के कारण मृग मरीचिका का भ्रम आपको हो सकता है लेकिन वह केवल भ्रम है और करोड़ों लोगों का अनुभव हमें बताता है कि पति पत्नी के समर्पण का स्थान कोई दोस्त या अन्य तथाकथित संबंध नहीं ले सकता।इसके साथ ही कभी विपरीत स्थिति उत्पन्न हो तो अपने बच्चों की शक्ल याद रखकर डिसीजन लें क्योंकि आपका रिश्ता टूटने की स्थिति में सबसे बुरा प्रभाव उन पर ही पड़ने वाला है।

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